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थोड़ी सी चालाकी

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थोड़ी सी चालाकी

शरीर बिकना ही बेचने की क्रिया नहीं होती.. अम्मा तों अन्य परिपेक्ष में इसे दुहराती थी.मासूमियत, विचार, ईमानदारी, समझ, कल्पनाओ का बिकना शरीर से ज्यादा महंगा हैं..

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Pallavi81

ना मैं चुप हूं ना गाता हूं, अकेला ही गुनगुनाता हूं