तुमने भी मन से नहीं देह से पहचाना है औरत को.

रात की प्रतीक्षा में , हमने सारा दिन गुज़ार दिया है और अब जबकि रात आ चुकी है , हम गहरे सन्नाटे में बिस्तर के सिरहाने बैठकर किसी स्वस्थ क्षण की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सुदामा पाण्डेय “धूमिल”

स्त्री की देह को चित्रित करता आदमी यक़ीनन देखने वाले अन्य मर्दों के ह्रदय में असीम ललक और उस देह को छू लेने की इच्छा जगा देता हो | लेकिन कैसे ? क्या उसने उस चित्र में उसके उभरे हुए गुलाबी उरोजों को कुछ और उभार दिया होगा ? या फिर कमर और जांघों को रसीला बना कर बिल्कुल सही आकार में ढाल दिया होगा , या शायद कमर को कुछ गदरीला और नाभि को कुछ और अन्दर धसा कर सुन्दर दिखाने की कोशिश की होगी ? क्यूँ ? अटपटा क्या है इसमें ? स्त्री के साथ खूबसूरती को इन्ही अंगो से तोल कर ही देखा और बताया जाता है | जानते हैं दरअसल चित्रकार ने स्त्री की देह बनाने के लिए अपने मन में उसकी देह की नहीं उसके मन की प्रतीमा को बिम्बित किया होगा | क्यां तुम समझते हो? तुम खुद को भले ही बदलती आधुनिक्ता के साथ दुसरों से भिन्न समझते होगे लेकिन असलियत तो यह है की इस मामले में कही न कही तुमने भी मन से नहीं देह से पहचाना है औरत को | जब तुम अपनी चर्चा के विषय में औरत के कपड़ों पर मंथन - मनन करते हो फिर चाहे तुम उसके पक्ष में ही क्यूँ न हो मगर फिर भी तुम उतने ही अपराधी माने जाओगे जितने रूढ़िवादी सोच के अपराधी मेरे चाचा है|

यूँ अभी कुछ दिनों पहले एक आदमी कि तस्वीर देखी मैंने , जी हाँ तस्वीर में उसने कमीज़ नहीं पहनी थी , मैं इस वक्त किसी भी प्रकार से स्त्री और पुरुष के बीच तुलना करने नहीं आई हूँ , उस व्यक्ति की जठिल बाह और मरदाना बदन प्रदर्शन कर रहा था उसके सौंदर्य का, लाइक्स के बटन में नज़र गई तो कुल हजार थे ,बहुत खूब | अपनी सभ्यता और संस्कृति को खंगोल कर देखे तो उन लिपियों और मूर्तियों में हमारी देवियों को कपड़े देह छुपाने के लिए बिल्कुल नहीं पहनाए गए है, सभी देवियां किसी न किसी का प्रतीक है उनका आकार भी देखो मेरी ही देह से बिल्कुल मिलता जुलता है , फिर यह हमेशा मन मस्तिस्क में बिठाने कि जरूरत है ,हर उस पुरुष को जिसने चित्र को देखकर लार टपकाई , हर उस औरत को जिसने दूसरी औरत को आंखे छोटी कर दांतों को भीचकर देखा. वो याद रखें कि महाकाली कोई वस्त्र धारण नहीं करती ना ही वो स्वयं के केशो को बांधती है | उसका क्रोध संसार को निगल जाने तक का साहस रखता है | आखिर में अपने लिए मैं यह लिखूंगी की यह सिर्फ एक आकर है मनुष्य इसके लिए इतना विचलित मत हो |

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Pallavi81

ना मैं चुप हूं ना गाता हूं, अकेला ही गुनगुनाता हूं