"मगर बस में जगह नहीं हैं" कंडक्टर ने कुछ ऊपर से नीचे उस आदमी को नज़रों से टटोलते हुए कहा
बुढ़ापे में ढल रहा धीरे-धीरे वो व्यक्ति ,सफ़ेद होने लगे बाल, दुबला सा शरीर एक खादी की कमीज़ और मटमैला पजामा पहने अपनी मिचमिची मगर चमकीली आंखो से कंडक्टर की ओर अनोखे भाव से निहारने लगा, जैसे की वो कुछ भी नहीं समझा !
बहुत देर तक कोई जवाब नहीं आने की वजह से कंडक्टर ने आगे कहा " अच्छा चलो आ जाओ अंदर "
अपना सब्जी का टोकर और एक सफेद थैला लिए वो बस के भीतर आ गया । उसने किसी भी सीट की ओर जगह मिलने कि अपेक्षा से नहीं देखा। मैं तीसरी सीट पर बैठी उसी की तरफ देख रही थी। क्यूं? नहीं जानती। बस चल पड़ी , मेरी नज़रे अब भी उस व्यक्ति पर थी ! वो अंदर की ओर घुसता रहा और तपाक से आकर ज़मीन पर बैठ गया। अटपटा था ,झटका लगा। उसके लिए बहुत साधरण था उसे कोई लाज शर्म नहीं मेहसूस हो रही थी । वह बैठ गया बस में एक अकेला व्यक्ति । मेरी ही तरह आपको भी यह अचंभित करता होगा है ना। यह हमने कब देखा? जमीन पर बैठने वाला व्यक्ति ज्यादा अचंभित कर देता है कुर्सी पर बैठने वालों से, अन्य मुसाफिरों को वो दिमागी हालत से ढीला लगा ,मेरी जगह से आगे बैठे हुए व्यक्ति की प्रक्रिया बता रही थी कि उन्हें वो कुछ पागल सा जान पड़ता है!
यकीनन दुनिया की ढाल से विपरीत जाने वाला व्यक्ति दिमागी रूप से अविकसित मान लिया जाता है या फिर अटपटा बेवकूफ!
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