"अभिनय कोई काम थोड़ी है ये तो मेरे लिए ध्यान जैसा है"
बैक स्टेज पर बैठे बड़े चाव से समीर भैया ये बात कह रहे थे । तकरीबन 3 साल से वे थिएटर कर रहे हैं। वो थिएटर नहीं आते, उनके आने भर से थिएटर खुदमें आ जाता है। क्योंकि मंच पर उनकी प्रस्तुति इतनी रोचक होती है कि नाटक खत्म होने से पहले लोगों के मुंह पर उनके किरदार का नाम होता है।
इसलिए आखिर में परिचय देते हुए वे कहते हैं "मैं हूं आपका अपना समीर शर्मा और दर्शक दीर्घा तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठती है।
समीर भैया थिएटर के संदीप भैया है , वहीं एस्पिरेंट वाले। ये व्यंग से ज्यादा उनके मिलते-जुलते व्यक्तित्व के लिए इस्तेमाल किया गया है। शांत समतल ध्यानी और अनुभवी। मैं तो पिछले ही साल थिएटर से जुड़ी थी ।पहले दिन जब उन्हें देखा तो लगा शायद पटकथा लेखक है। कोई भी यही सोचेगा कवियों जैसी वेशभूषा लंबे घने बाल, बड़ी हुई दाढ़ी। मेरे दिमाग में कवि की जैसी परछाई है समीर भैया उसमे एक दम सटीक बैठ रहे थे।
लेकिन तभी रचना मैम ने कहा "समीर ये वाला डायलॉग बोलकर दिखाना"
शांति से अपनी कुर्सी पर बैठे भैया उठे स्क्रिप्ट को आंख घुमाकर देखा और बेहद भरी मोटी स्थिर आवाज में बोले "हम कहा जाई मालिक साहब ई ही तो हमार घर बार हो" बस इस चंद डायलॉग प्रस्तुति ने बता दिया कि यह कितने निपूर्ण कलाकार हैं।
बस फिर क्या था कवि जैसा भेष और अभिनय इतना उम्दा था ही ऐसे आदमियों से बात करने में भला कैसी शर्म ?
और किस्मत से मेरी भैया से आगे चलकर बनी भी खूब अच्छी । उनसे सीखने को बहुत कुछ मिला उनके शक्ल के हाव-भाव, आवाज को ऊपर नीचे करना, डायलॉग के लिए गंभीरता कैसे लानी , किस प्रकार से आवाज का इस्तेमाल किया जाता है। यह सारी बातें उन्हीं से जाकर तो सीखी। वे अभिनय से दूर कभी नहीं होंगे, अभिनय उनमें नही अभिनय के अंदर वे आते हैं। ये पंकज त्रिपाठी मनोज बाजपेई,राजकुमार राव का मिश्रण है। और ये मिश्रण देखिए कैसा रस पैदा करेगा।
मगर जैसा कि एस्पिरेंट में था, संदीप भैया जिसके भी गुरु बनते हैं उनका शिष्य चला जाता है और पीछे छूट जाते हैं संदीप भैया वैसे ही समीर भैया मुझसे छूट गए। पीछे तो नहीं क्योंकि उम्र में वे मुझसे काफी बड़े थे और अनुभवी भी ,मेरे लिए अभिनय कभी पहली पसंद नही रहा। मैं एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की हूं इसे पहला कैरियर का दर्जा दे भी नहीं सकती । मेरे लिए पत्रकारिता पति है और अभिनय प्रेमी इसलिए प्रेमी छोड़ना पड़ा ।पति के साथ ससुराल जाना पड़ा तो मायके के समीर भैया से दूर हो गई ।
और वो खड़े रहे बारिश में वैसे ही भीगते हुए मगर परिस्थितियों की इस बारिश पर भी उन्होंने अपना छाता बनाकर ओढ़ लिया और अब वे एनएसडी वाराणसी के मंच से परिचय देते हैं "मैं हूं आपका अपना समीर शर्मा "
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